लोकसभा चुनवा से ऐन पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की छोटी बहन प्रियंका गांधी के राजनीति में कदम रखकर बीजेपी खेमे में खलबली मचा दी है. प्रियंका के लोकसभा चुनाव लड़ने पर उनके बड़े भाई राहुल गांधी ने कहा कि हम बैकफुट पर नहीं बल्कि फ्रंटफुट पर खेलेंगे. प्रियंका को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद कांग्रेस वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के ट्वीट किया, जिसके लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या प्रियंका गांधी वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेंगी.
दरअसल, कपिल सिब्बल ने गुरुवार को ट्वीट किया, 'मोदीजी और अमित शाह ने कांग्रेस मुक्त भारत का आह्वान किया था. प्रियंका गांधी के अब पूर्वांचल की सियासत में आने से हम देखेंगे .... मुक्त वाराणसी? .... मुक्त गोरखपुर?' ये दोनों सीटें पूर्वांचल में आती हैं, जहां की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी को सौंपी गई है. ऐसे में राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस को इस इलाके में पार्टी को मजबूत करने के लिए प्रियंका को वाराणसी सीट से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतार सकती है?
प्रियंका गांधी के लोकसभा चुनाव लड़ने पर बुधवार को राहुल गांधी ने कहा था कि ये फैसला पूरी तरह से प्रियंका पर ही निर्भर करेगा. हमारा बड़ा स्टेप लेने के पीछे मकसद यही है कि हम इस चुनाव में बैकफुट पर नहीं फ्रंटफुट पर लड़ेंगे. कांग्रेस पार्टी पूरे दमखम से ये चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा कि मैं व्यक्तिगत तौर बहुत खुश हूं क्योंकि वह बहुत कर्मठ व सक्षम हैं और अब मेरे साथ काम करेंगी.
बता दें कि प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में कदम रखने से पहले तक वो अमेठी और रायबरेली में ही चुनाव प्रचार तक ही अपने को सीमित रखती थीं. अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद है. अब सियासत में कदम रखने के बाद उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं. ये इलाका बीजेपी का मजबूत दुर्ग माना जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने बनारस संसदीय सीट से उतरकर पूर्वांचल में सभी दलों का सफाया कर दिया था. महज आजमगढ़ सीट थी जिसे बीजेपी नहीं जीत सकी थी.
हालांकि, पूर्वांचल एक दौर में कांग्रेस का मजबूत इलाका होता था. इस इलाके से कांग्रेस को कई दिग्गज नेता रहे हैं. इंदिरा गांधी के दौर में कमलापति त्रिपाठी सूबे में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे और वाराणसी सीट से 1980 में सांसद भी चुने गए थे. पूर्वांचल में उनकी तूती बोलती थी.
हिंदी सिनेमा में देशभक्ति फिल्मों के लिए महशूर दिग्गज अभिनेता-फिल्मकार मनोज कुमार ने कंगना रनौत की जमकर तारीफ़ की है. कंगना की फिल्म 'मर्णिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' देखने के बाद न्यूज एजेंसी आईएएनएस से एक्टर ने कहा, "मुझे लगता है कि कंगना पर्दे पर उनका (रानी लक्ष्मीबाई) किरदार निभाने के लिए ही पैदा हुई हैं. फिल्म में हर किसी ने शानदार काम किया है, लेकिन कंगना ने रानी लक्ष्मीबाई के किरदार को परदे पर अमर कर दिया."
मणिकर्णिका, कंगना की महत्वाकांक्षी फिल्म है. ये इसी 25 जनवरी को रिलीज हो रही है. हाल ही में मुंबई में मणिकर्णिका की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई थी. बॉलीवुड के तमाम दिग्गजों ने फिल्म देखी. मनोज कुमार फिल्म को लेकर काफी खुश नजर आए. बताते चलें कि मनोज कुमार की पहचान भारत कुमार के रूप में की जाती है. उन्होंने अपनी करियर में कई देशभक्ति फिल्मों का निर्माण किया.
मनोज कुमार को उपकार, पूरब पश्चिम, शहीद, क्रांति और 'रोटी कपड़ा और मकान' जैसी महशूर फिल्मों में अभिनय और निर्माण के लिए याद किया जाता है.
यह भी बताते चलें कि मणिकर्णिका के जरिए कंगना रनौत निर्देशन में डेब्यू करने जा रही हैं. उनके निर्देशन में ही फिल्म के काफी हिस्से की शूटिंग की गई है. इसी वजह से निर्देशन के लिए कृष के साथ उन्हें भी क्रेडिट दिया जा रहा है. ये फिल्म रिपब्लिक डे वीक पर रिलीज हो रही है. इसके साथ बाल ठाकरे के जीवन पर बनी नवाजुद्दीन सिद्दीकी और अमृता राव स्टारर ठाकरे भी रिलीज हो रही है.
Thursday, January 24, 2019
Wednesday, January 16, 2019
अखिलेश से मिले जयंत चौधरी, RLD की सीटों पर सस्पेंस बरकरार
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) हिस्सा होगी या नहीं, इस बात का फैसला बुधवार को हो सकता है. इस संबंध में आरएलडी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने के लिए पार्टी कार्यलय में पहुंचकर मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने कहा कि सीट की कोई बात नहीं है सवाल रिश्ते का है. इसमें हम लोग काफी मजबूत रहेंगे. हालांकि उन्होंने आरएलडी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, इस पर कुछ भी नहीं बोले.
अखिलेश से मुलाकात के बाद बाहर निकले जयंत चौधरी ने कहा कि सपा अध्यक्ष के साथ उनकी बातचीत अच्छी रही, हमें इसकी सफलता मिलेगी. पहले चरण की बातचीत को हमने आगे बढ़ाया है. उन्होंने कहा कि बीजेपी के खिलाफ और मोदी सरकार के किसान विरोधी नीति के खिलाफ गठबंधन पूरे देश में खड़ा होगा. उन्होंने कहा कि सीट की कोई बात नहीं है सवाल रिश्ते का है. कैराना में हमारा तालमेल बहुत सफल रहा है. उन्होंने कहा कि सीटों को लेकर आपस में कोई लड़ाई नहीं है बल्कि हम मिलकर लड़ने की लड़ाई है.
माना जा रहा था कि दोनों नेताओं की बीच आज होने वाली इस बैठक में आरएलडी को दी जाने वाली सीटों लेकर तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन जयंत चौधरी ने सीटों को लेकर कोई बात नहीं कही. हालांकि सपा-बसपा गठबंधन ने आरएलडी के लिए 2 सीटें छोड़ी हैं, लेकिन इस पर पार्टी अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह सहमत नहीं हैं.
सूत्रों के मुताबिक आरएलडी सम्मानजनक तौर पर अब गठबंधन में 4 सीटें चाहती है, जिसमें मुजफ्फरनगर , बागपत और मथुरा. इन तीन सीटों के अलावा कैराना और अमरोहा में से एक सीट कोई भी हो सकती है. हालांकि गठबंधन ने 2 सीटें आरएलडी के लिए छोड़ रखी हैं, इसके अलावा अखिलेश यादव अपने कोटे से उन्हें एक और सीट ऑफर कर सकते हैं. आरएलडी 2 सीटों के लिए तैयार नहीं है लेकिन क्या वो 3 सीटों पर मान जाएगी इसे अभी कहा नहीं जा सकता है.
बता दें कि शनिवार को बसपा अध्यक्ष मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साझा प्रेस कान्फ्रेंस करके गठबंधन का एलान किया था. इस दौरान दोनों नेताओं ने आरएलडी को लेकर किसी तरह की कोई बात नहीं कही थी. हालांकि, सपा-बसपा ने सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि 2 सीटें सहयोगी दल के लिए छोड़ रखा है. इसके अलावा अमेठी और रायबरेली सीट पर कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन कोई उम्मीदवार नहीं उतारने की बात कही है.
प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान अखिलेश यादव ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि आरएलडी की सीटों के बारे में अलग से बता दिया जाएगा. हालांकि उसी के कुछ देर बाद सपा महासचिव राम गोपाल यादव ने आरएलडी को दो सीटें देने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि दो सीटें जो छोड़ी गई हैं वो आरएलडी के लिए ही हैं.
वहीं, आरएलडी ने सपा-बसपा के सामने छह सीटों की मांगी रखी है. इनमें बागपत, मथुरा, कैराना, हाथरस, मुजफ्फरनगर और अमरोहा सीट शामिल हैं. सपा-बसपा गठबंधन आरएलडी को बागपत और मुजफ्फरनगर सीटें देना चाहता है. इसमें मुजफ्फरनगर से चौधरी अजित सिंह और बागपत सीट से उनके बेटे जयंत चौधरी चुनाव लड़ सकते हैं.
सपा अपने कोटे से आरएलडी को दो सीटें दे सकती है, लेकिन वो सीधे तौर पर नहीं होंगी. वो सीटें ऐसी होंगी, जहां आरएलडी उम्मीदवार सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा. सूत्रों की मानें तो इसके लिए आरएलडी को पहले ही इस फॉर्मूले को बता दिया गया है. अखिलेश यादव और जयंत की पहले हुए बैठक में ही इस बात की जानकारी दे दी गई थी कि दो सीटें आरएलडी अपने चुनाव चिन्ह पर लड़े और दो सीटें कैराना मॉडल के तहत.
दिलचस्प बात ये है कि आरएलडी अपने सियासी सफर में सबसे संकट के दौर से गुजर रही है. मौजूदा दौर में उसके पार्टी के एक विधायक है जो राज्यसभा चुनाव में बीजेपी से जुड़ गए हैं. इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित चौधरी और जयंत चौधरी भी जीत नहीं सके थे. बता दें कैराना उपचुनाव में सपा बसपा के समर्थन से आरएलडी उम्मीदवार ने जीत हासिल कर पार्टी का खाता खोला था. हालांकि, ये सपा के उम्मीदवार थे, जिन्हें आरएलडी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था.
अखिलेश से मुलाकात के बाद बाहर निकले जयंत चौधरी ने कहा कि सपा अध्यक्ष के साथ उनकी बातचीत अच्छी रही, हमें इसकी सफलता मिलेगी. पहले चरण की बातचीत को हमने आगे बढ़ाया है. उन्होंने कहा कि बीजेपी के खिलाफ और मोदी सरकार के किसान विरोधी नीति के खिलाफ गठबंधन पूरे देश में खड़ा होगा. उन्होंने कहा कि सीट की कोई बात नहीं है सवाल रिश्ते का है. कैराना में हमारा तालमेल बहुत सफल रहा है. उन्होंने कहा कि सीटों को लेकर आपस में कोई लड़ाई नहीं है बल्कि हम मिलकर लड़ने की लड़ाई है.
माना जा रहा था कि दोनों नेताओं की बीच आज होने वाली इस बैठक में आरएलडी को दी जाने वाली सीटों लेकर तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन जयंत चौधरी ने सीटों को लेकर कोई बात नहीं कही. हालांकि सपा-बसपा गठबंधन ने आरएलडी के लिए 2 सीटें छोड़ी हैं, लेकिन इस पर पार्टी अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह सहमत नहीं हैं.
सूत्रों के मुताबिक आरएलडी सम्मानजनक तौर पर अब गठबंधन में 4 सीटें चाहती है, जिसमें मुजफ्फरनगर , बागपत और मथुरा. इन तीन सीटों के अलावा कैराना और अमरोहा में से एक सीट कोई भी हो सकती है. हालांकि गठबंधन ने 2 सीटें आरएलडी के लिए छोड़ रखी हैं, इसके अलावा अखिलेश यादव अपने कोटे से उन्हें एक और सीट ऑफर कर सकते हैं. आरएलडी 2 सीटों के लिए तैयार नहीं है लेकिन क्या वो 3 सीटों पर मान जाएगी इसे अभी कहा नहीं जा सकता है.
बता दें कि शनिवार को बसपा अध्यक्ष मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साझा प्रेस कान्फ्रेंस करके गठबंधन का एलान किया था. इस दौरान दोनों नेताओं ने आरएलडी को लेकर किसी तरह की कोई बात नहीं कही थी. हालांकि, सपा-बसपा ने सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि 2 सीटें सहयोगी दल के लिए छोड़ रखा है. इसके अलावा अमेठी और रायबरेली सीट पर कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन कोई उम्मीदवार नहीं उतारने की बात कही है.
प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान अखिलेश यादव ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि आरएलडी की सीटों के बारे में अलग से बता दिया जाएगा. हालांकि उसी के कुछ देर बाद सपा महासचिव राम गोपाल यादव ने आरएलडी को दो सीटें देने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि दो सीटें जो छोड़ी गई हैं वो आरएलडी के लिए ही हैं.
वहीं, आरएलडी ने सपा-बसपा के सामने छह सीटों की मांगी रखी है. इनमें बागपत, मथुरा, कैराना, हाथरस, मुजफ्फरनगर और अमरोहा सीट शामिल हैं. सपा-बसपा गठबंधन आरएलडी को बागपत और मुजफ्फरनगर सीटें देना चाहता है. इसमें मुजफ्फरनगर से चौधरी अजित सिंह और बागपत सीट से उनके बेटे जयंत चौधरी चुनाव लड़ सकते हैं.
सपा अपने कोटे से आरएलडी को दो सीटें दे सकती है, लेकिन वो सीधे तौर पर नहीं होंगी. वो सीटें ऐसी होंगी, जहां आरएलडी उम्मीदवार सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा. सूत्रों की मानें तो इसके लिए आरएलडी को पहले ही इस फॉर्मूले को बता दिया गया है. अखिलेश यादव और जयंत की पहले हुए बैठक में ही इस बात की जानकारी दे दी गई थी कि दो सीटें आरएलडी अपने चुनाव चिन्ह पर लड़े और दो सीटें कैराना मॉडल के तहत.
दिलचस्प बात ये है कि आरएलडी अपने सियासी सफर में सबसे संकट के दौर से गुजर रही है. मौजूदा दौर में उसके पार्टी के एक विधायक है जो राज्यसभा चुनाव में बीजेपी से जुड़ गए हैं. इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित चौधरी और जयंत चौधरी भी जीत नहीं सके थे. बता दें कैराना उपचुनाव में सपा बसपा के समर्थन से आरएलडी उम्मीदवार ने जीत हासिल कर पार्टी का खाता खोला था. हालांकि, ये सपा के उम्मीदवार थे, जिन्हें आरएलडी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था.
Monday, January 14, 2019
सरकार गिराने की कोशिश कर रही भाजपा: कांग्रेस, कुमारस्वामी का दावा- कोई पाला नहीं बदलेगा
कांग्रेस नेता और कर्नाटक के जल संसाधन मंत्री डीके शिवकुमार ने भाजपा पर सरकार गिराने की कोशिश का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए भाजपा ऑपरेशन लोटस चला रही है। कांग्रेस के तीन विधायक मुंबई के एक होटल में भाजपा के कुछ नेताओं के साथ ठहरे हुए हैं।" उधर, मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि वे मुझे बताकर गए हैं। चिंता की कोई बात नहीं है। हमारा कोई भी विधायक पाला नहीं बदलेगा।
कुमारस्वामी ने कहा, ''सभी तीन विधायक लगातार मेरे संपर्क में हैं। वे लोग मुझे बताने के बाद ही मुंबई गए हैं। मेरी सरकार को कोई खतरा नहीं है। मुझे पता है कि भाजपा किसके संपर्क में हैं और वे क्या ऑफर कर रहे हैं। मैं इससे निपट लूंगा। मीडिया को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।''
सभी विधायक हमारे साथ- उपमुख्यमंत्री परमेश्वर
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर ने कहा, " हमारे विरोधी कह रहे हैं कि सरकार गिरने जा रही है, लेकिन ऐसा नहीं होने जा रहा है। हमारे कुछ विधायक गए हैं, यह बात सच है। वे विधायक मंदिर गए हैं। छुट्टियों पर गए हैं या फिर परिवार से साथ समय बिताने गए हैं। यह बात हमें नहीं पता। किसी ने भी यह नहीं कहा है कि विधायक भाजपा में शामिल होकर सरकार को गिराने जा रहे हैं। सभी विधायक हमारे साथ अभी तक बने हुए हैं।"
उनके विधायक हमारे संपर्क में नहीं, यह अफवाह है: येदियुरप्पा
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा दिल्ली में अपने विधायकों के साथ पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाया- कर्नाटक का मुख्यमंत्री होने के बावजूद कुमारस्वामी विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगे हैं। उन्होंने हमारे कलबुर्गी विधायक को मंत्री पद और पैसों का लालच दिया। हम यहां पर अपनी एकता को दर्शाने के लिए आए हैं। हम यहां एक-दो दिन और रहेंगे।
येदियुरप्पा ने 3 कांग्रेसी विधायकों के भाजपा के संपर्क में होने की रिपोर्ट पर कहा- यह सब अफवाहें हैं, इनमें कोई सच्चाई नहीं है। ये केवल जेडीएस और कांग्रेस के बीच में है। हमारे संपर्क में उनका कोई भी विधायक नहीं है। हमारा फोकस केवल अपने विधायकों को एकसाथ रखने में है।
सदानंद गौड़ा ने कहा- भाजपा पर आरोप गलत
केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि कांग्रेस को पहले अपना घर संभालना चाहिए। वे अपने विधायकों को एकसाथ कर्नाटक में रख नहीं पा रहे और हर बात के लिए भाजपा पर उंगली उठाते हैं। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि सब बातें बेबुनियाद हैं। यह कांग्रेस और जेडीएस के बीच का मामला है। हम उनके किसी भी विधायक के संपर्क में नहीं हैं।
ऑपरेशन लोटस क्या है?
2008 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। भाजपा को 110, कांग्रेस को 80, जेडीएस को 28 और निर्दलीय को 6 सीटें मिली थीं।
भाजपा ने 6 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। इसके बाद भाजपा ने जेडीएस के चार और कांग्रेस के तीन विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया था। इसके लिए उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बाद में सभी भाजपा में शामिल हो गए। इन सीटों पर उप चुनाव हुए। सात में से पांच विधायक जीत गए। इस तरह सदन में भाजपा की संख्या 115 हो गई। इस पूरी कवायद को ऑपरेशन लोटस कहा गया।
कुमारस्वामी ने कहा, ''सभी तीन विधायक लगातार मेरे संपर्क में हैं। वे लोग मुझे बताने के बाद ही मुंबई गए हैं। मेरी सरकार को कोई खतरा नहीं है। मुझे पता है कि भाजपा किसके संपर्क में हैं और वे क्या ऑफर कर रहे हैं। मैं इससे निपट लूंगा। मीडिया को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।''
सभी विधायक हमारे साथ- उपमुख्यमंत्री परमेश्वर
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर ने कहा, " हमारे विरोधी कह रहे हैं कि सरकार गिरने जा रही है, लेकिन ऐसा नहीं होने जा रहा है। हमारे कुछ विधायक गए हैं, यह बात सच है। वे विधायक मंदिर गए हैं। छुट्टियों पर गए हैं या फिर परिवार से साथ समय बिताने गए हैं। यह बात हमें नहीं पता। किसी ने भी यह नहीं कहा है कि विधायक भाजपा में शामिल होकर सरकार को गिराने जा रहे हैं। सभी विधायक हमारे साथ अभी तक बने हुए हैं।"
उनके विधायक हमारे संपर्क में नहीं, यह अफवाह है: येदियुरप्पा
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा दिल्ली में अपने विधायकों के साथ पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाया- कर्नाटक का मुख्यमंत्री होने के बावजूद कुमारस्वामी विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगे हैं। उन्होंने हमारे कलबुर्गी विधायक को मंत्री पद और पैसों का लालच दिया। हम यहां पर अपनी एकता को दर्शाने के लिए आए हैं। हम यहां एक-दो दिन और रहेंगे।
येदियुरप्पा ने 3 कांग्रेसी विधायकों के भाजपा के संपर्क में होने की रिपोर्ट पर कहा- यह सब अफवाहें हैं, इनमें कोई सच्चाई नहीं है। ये केवल जेडीएस और कांग्रेस के बीच में है। हमारे संपर्क में उनका कोई भी विधायक नहीं है। हमारा फोकस केवल अपने विधायकों को एकसाथ रखने में है।
सदानंद गौड़ा ने कहा- भाजपा पर आरोप गलत
केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि कांग्रेस को पहले अपना घर संभालना चाहिए। वे अपने विधायकों को एकसाथ कर्नाटक में रख नहीं पा रहे और हर बात के लिए भाजपा पर उंगली उठाते हैं। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि सब बातें बेबुनियाद हैं। यह कांग्रेस और जेडीएस के बीच का मामला है। हम उनके किसी भी विधायक के संपर्क में नहीं हैं।
ऑपरेशन लोटस क्या है?
2008 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। भाजपा को 110, कांग्रेस को 80, जेडीएस को 28 और निर्दलीय को 6 सीटें मिली थीं।
भाजपा ने 6 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। इसके बाद भाजपा ने जेडीएस के चार और कांग्रेस के तीन विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया था। इसके लिए उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बाद में सभी भाजपा में शामिल हो गए। इन सीटों पर उप चुनाव हुए। सात में से पांच विधायक जीत गए। इस तरह सदन में भाजपा की संख्या 115 हो गई। इस पूरी कवायद को ऑपरेशन लोटस कहा गया।
Monday, January 7, 2019
ग़रीब सवर्णों को आरक्षण मिल पाना कितना संभव?
केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के फ़ैसले को क़ानूनी विशेषज्ञों ने 'करोड़ों बेरोज़गारों को सपने बेचने' वाला बताया है.
कर्नाटक राज्य में वैधानिक रूप से बने पिछड़ा वर्ग आयोग के एक पूर्व चैयरमेन का कहना है कि भारत में आरक्षण केवल 'सामाजिक रूप से पिछड़ेपन के आधार' पर ही दिया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने बीबीसी हिंदी से कहा, "मेरे हिसाब से यह आकाश में एक विशाल चिड़िया की तरह है जो चुनावी मौसम में आएगी. शायद सरकार इस तथ्य को स्वीकार कर चुकी है कि न्यायालय इसे गिरा देगा लेकिन अगली सरकार के लिए इस मुद्दे से निपटना मुश्किल होगा. अभी यह करोड़ों बेरोज़गारों को सपने बेच रहे हैं."
कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व चैयरमेन और पूर्व महाधिवक्ता रवि वर्मा कहते हैं, "अगर हम पीछे देखें तो पाएंगे की पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल में मंडल आयोग की रिपोर्ट के प्रावधानों को लागू करते हुए अगड़ी जातियों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इसे ख़ारिज कर दिया था."
लेकिन केंद्र सरकार की योजना है कि वह संविधान में संशोधन करके आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करे जिसके ज़रिए सवर्णों को नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की सुविधा मिल पाए.
हेगड़े कहते हैं, "अगर सरकार यह सोच रही है कि वह संविधान में बदलाव कर 50 फ़ीसदी से अधिक आरक्षण की व्यवस्था कर देती है तो इसको कई सवालों का सामना करना पड़ेगा."
वह कहते हैं, "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या संविधान में तब कोई बदलाव किया जा सकता है जब समानता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता है."
पेरियार रामास्वामी द्वारा बनाई गई पार्टी द्रविड़ कड़गम (डीके) के महासचिव और वकील सैद अरुलमोझी कहते हैं, "संविधान सभा में आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी. आर्थिक आधार का पैमाना बेहद लचीला था जो कोई भी आर्थिक स्थिति प्रदान नहीं कर सकता."
अरुलमोझी ने कहा, "एक परिवार में एक भाई बहुत अधिक कमा सकता है जबकि बहन बहुत कम कमा सकती है. तो अब हम कह सकते हैं कि एक अगड़ा है और एक पिछड़ा है."
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील गोपाल प्रासारन कहते हैं, "आर्थिक पिछड़ेपन की पहचान आप कैसे कर सकते हैं. हर एक सरकार आरक्षण में अधिक जटिलताएं पैदा करने की कोशिश कर रही है और यह निश्चित रूप से देश के लिए अच्छा नहीं है."
प्रासारन को भरोसा है कि हालिया फ़ैसला चुनाव को दिमाग़ में रखकर लिया गया है.
वह कहते हैं, "अगर संविधान संशोधन बिल पास भी हो जाए तब भी इसे चुनौती दी जा सकती है और इसे रद्द कराया जा सकता है."
कर्नाटक राज्य में वैधानिक रूप से बने पिछड़ा वर्ग आयोग के एक पूर्व चैयरमेन का कहना है कि भारत में आरक्षण केवल 'सामाजिक रूप से पिछड़ेपन के आधार' पर ही दिया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने बीबीसी हिंदी से कहा, "मेरे हिसाब से यह आकाश में एक विशाल चिड़िया की तरह है जो चुनावी मौसम में आएगी. शायद सरकार इस तथ्य को स्वीकार कर चुकी है कि न्यायालय इसे गिरा देगा लेकिन अगली सरकार के लिए इस मुद्दे से निपटना मुश्किल होगा. अभी यह करोड़ों बेरोज़गारों को सपने बेच रहे हैं."
कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व चैयरमेन और पूर्व महाधिवक्ता रवि वर्मा कहते हैं, "अगर हम पीछे देखें तो पाएंगे की पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल में मंडल आयोग की रिपोर्ट के प्रावधानों को लागू करते हुए अगड़ी जातियों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इसे ख़ारिज कर दिया था."
लेकिन केंद्र सरकार की योजना है कि वह संविधान में संशोधन करके आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करे जिसके ज़रिए सवर्णों को नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की सुविधा मिल पाए.
हेगड़े कहते हैं, "अगर सरकार यह सोच रही है कि वह संविधान में बदलाव कर 50 फ़ीसदी से अधिक आरक्षण की व्यवस्था कर देती है तो इसको कई सवालों का सामना करना पड़ेगा."
वह कहते हैं, "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या संविधान में तब कोई बदलाव किया जा सकता है जब समानता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता है."
पेरियार रामास्वामी द्वारा बनाई गई पार्टी द्रविड़ कड़गम (डीके) के महासचिव और वकील सैद अरुलमोझी कहते हैं, "संविधान सभा में आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी. आर्थिक आधार का पैमाना बेहद लचीला था जो कोई भी आर्थिक स्थिति प्रदान नहीं कर सकता."
अरुलमोझी ने कहा, "एक परिवार में एक भाई बहुत अधिक कमा सकता है जबकि बहन बहुत कम कमा सकती है. तो अब हम कह सकते हैं कि एक अगड़ा है और एक पिछड़ा है."
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील गोपाल प्रासारन कहते हैं, "आर्थिक पिछड़ेपन की पहचान आप कैसे कर सकते हैं. हर एक सरकार आरक्षण में अधिक जटिलताएं पैदा करने की कोशिश कर रही है और यह निश्चित रूप से देश के लिए अच्छा नहीं है."
प्रासारन को भरोसा है कि हालिया फ़ैसला चुनाव को दिमाग़ में रखकर लिया गया है.
वह कहते हैं, "अगर संविधान संशोधन बिल पास भी हो जाए तब भी इसे चुनौती दी जा सकती है और इसे रद्द कराया जा सकता है."
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