Thursday, May 2, 2019

इशरत जहाँ केस: डीजी वंज़ारा और अमीन को कोर्ट ने आरोपमुक्त किया

सीबीआई की विशेष अदालत ने इशरत जहाँ फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में गुजरात के पूर्व पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा और एनके अमीन को आरोपमुक्त कर दिया है.

गुजरात सरकार ने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत इनके ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने की मंज़ूरी नहीं दी थी. वंज़ारा और अमीन इशरत जहाँ फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में अभियुक्त थे.

इसके बाद वंजारा और अमीन ने कोर्ट में उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही खत्म करने की अपील की थी. गुरुवार को विशेष अदालत ने वंज़ारा और अमीन के ख़िलाफ़ आरोप हटा लेने का फ़ैसला सुनाया और दोनों को आरोपमुक्त कर दिया.

इससे पहले, कोर्ट ने मामले की सुनवाई 16 अप्रैल को पूरी कर ली थी.

सीआरपीसी की धारा 197 के तहत किसी भी सरकारी कर्मचारी के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए राज्य सरकार से मंज़ूरी लेना आवश्यक है. इसी मामले में अदालत ने पहले दोनों को आरोपमुक्त करने की याचिका खारिज कर दी थी.

इशरत जहां की माँ शमीमा कौसर ने अपनी याचिका में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 197 के तहत लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिये मंज़ूरी की ज़रूरत होती है लेकिन यह इस मामले पर लागू नहीं होता है क्योंकि यह अपहरण, कैद में रखने और हत्या का मामला है, जो लोक सेवक की आधिकारिक ड्यूटी के दायरे में नहीं आता है.

वंजारा ने कहा, "गुजरात पुलिस के द्वारा जो भी एनकाउंटर्स किए गए आतंकवादियों के...वे विदेशी थे, कई देश में से भी थे, वे राष्ट्रविरोधी थे और देशद्रोही थे. उन लोगों का उद्देश्य गुजरात की क़ानून-व्यवस्था को ख़त्म करने का था. उनका उद्देश्य उस वक्त के मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी की हत्या करने का था. गुजरात की पुलिस ने जो भी किया वो क़ानून के अंतर्गत किया, कोई ग़ैरक़ानूनी कार्रवाई नहीं की थी. लेकिन फिर भी कुछ राजनीतिक साजिशें गुजरात पुलिस के ख़िलाफ़ हुईं और हमारे असली एनकाउंटर्स को फ़ेक बताकर झूठे केस किए. इनके तहत हमें आठ-आठ साल जेल में रहना पड़ा."

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा है, "2014 के बाद जो भी केस हैं, उनमें जाँच एजेंसियों पर इस तरह दबाव बना है. मैं तो कहूँगी कि डायरेक्टली दिल्ली से दबाव बना है. ताकि वो तहक़ीक़ात और जो सबूत पहले इकट्ठा हुए थे, वो कोर्ट के सामने न रखे जा सकें."

उन्होंने कहा कि इशरत जहाँ की माँ शमीमा कौसर ने अपने हलमनामे में सारे सबूत पेश किए थे, लेकिन अफ़सोस की बात है कि कोर्ट ने इन्हें नज़रअंदाज़ किया है.

वे पहले क्राइम ब्रांच में थे और बाद में गुजरात एटीएस यानी एंटी टैररिस्ट स्क्वाड के प्रमुख रहे. उसके बाद पाकिस्तान सीमा से सटी बॉर्डर रेंज के आईजी रहे.

वे 2002 से 2005 तक अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच के डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस थे. उनकी इस पोस्टिंग के दौरान करीब बीस लोगों का एनकाउंटर हुआ. बाद में सीबीआई जाँच में पता चला कि ये एनकाउंटर फ़र्ज़ी थे. कहा जाता है कि वे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे क़रीबी पुलिस अधिकारी थे.

वंज़ारा को 2007 में गुजरात सीआईडी ने गिरफ़्तार किया था और उसके बाद वे जेल गए. उन पर अभी आठ लोगों की हत्या का आरोप था, जिनमें सोहराबुद्दीन, उसकी पत्नी कौसर बी, तुलसीराम प्रजापति, सादिक़ जमाल, इशरत और उसके साथ मारे गए तीन अन्य लोग शामिल हैं.

इनके एनकाउंटर के बाद क्राइम ब्रांच ने सफ़ाई दी थी कि ये सभी पाकिस्तानी आतंकी थे और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की जान लेना चाहते थे. बाद में कोर्ट के आदेश पर सीबीआई जाँच हुई, तो साबित हुआ कि ये सभी एनकाउंटर फ़र्ज़ी थे.

सितंबर 2014 में मुंबई की एक अदालत ने वंज़ारा को सोहराबुद्दीन, तुलसीराम प्रजापति के फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में ज़मानत दे दी थी.

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने जब सोहराबुद्दीन केस को ट्रायल के लिए गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित किया, तब से वंज़ारा मुंबई जेल में थे. माना जाता है कि मुंबई जेल में रहने के कारण वंज़ारा काफ़ी निराश हो गए थे और इसी कारण उन्होंने सितंबर 2013 में इस्तीफ़ा दे दिया था.

डीजी वंज़ारा से पहले भी गुजरात के कई अन्य पुलिस अफ़सरों ने इस्तीफ़ा दिया था. सबसे पहले आईपीएस अधिकारी रहे संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा देकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ दंगों में शामिल होने का आरोप लगाया था.

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