Wednesday, February 6, 2019

दिमाग लगाने वाला काम सुबह करना ठीक या शाम को?

परीक्षा की तैयारी के लिए सुबह उठकर पढ़ाई किया करो- भारत में छात्रों के लिए मां-बाप की यह सामान्य सलाह होती है.

क्या इस सलाह समझदारी भरी है? क्या सुबह की पढ़ाई ही सबसे बेहतर है?

हमारा दिमाग एकदम सही, सुचारू रूप से चलने वाली मशीन नहीं है. दिन के अलग-अलग समय हमारी प्रतिक्रियाएं एक जैसी नहीं होतीं.

भोजन के बाद एकाग्रता घटती है, यह शायद आपने भी महसूस किया होगा. लेकिन हमारी स्नायविक प्रतिक्रियाओं में दोपहर के भोजन के बाद के आलस्य की अपेक्षा कहीं अधिक उतार-चढ़ाव आता है.

सवाल है कि हम उन संकेतों को कैसे पकड़ सकते हैं कि काम के दौरान हमारा दिमाग बदल रहा है?

अगर आपको पता चल जाता कि आपका प्रदर्शन कब चरम पर होगा तो क्या आप अपने दिन की योजना अलग बनाते?

स्नायविक बदलावों पर ध्यान देकर क्या आप अपने दिमाग को एक बेहतर श्रमिक बना सकते हैं?

सुबह में तनाव वाले काम
अगर सुबह उठकर काम करने में आपको परेशानी होती है तो खुद को इसके लिए मजबूर मत करें.

कुछ मशहूर बिजनेस लीडर्स और फ़िटनेस के प्रति अतिरिक्त सतर्क रहने वाले सेलिब्रिटीज़ की सलाह के बावजूद यह जरूरी नहीं कि सोने का पैटर्न बदल देने से आपका प्रदर्शन सुधर जाएगा.

फिर भी सुबह का समय दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है. जापानी श्रमिकों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि सुबह में हम तनाव से भरे कामों को बेहतर तरीके से करते हैं.

श्रमिकों को जगने के 2 घंटे बाद या 10 घंटे बाद एक तनाव परीक्षण से गुजरने का विकल्प दिया गया.

मकसद यह देखना था कि वे काम की शुरुआत में ही इसे करना चाहते थे या दिन के अंत में दफ़्तर छोड़ते समय

अध्ययन से पता चला कि सुबह के परीक्षण के बाद कर्मचारियों में कार्टिसोल का स्तर बहुत बढ़ गया, लेकिन शाम के परीक्षण के बाद ऐसा नहीं हुआ.

जापान की होक्काइडो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर युजिरो यामानाका कहते हैं, "कार्टिसोल हमारे शरीर की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह लड़ो-या-भागो अनुक्रिया में शामिल मुख्य हार्मोन है."

कार्टिसोल रिलीज़ न हो तो शरीर की इस अनुक्रिया के अहम हिस्से नहीं हो पाते. यह हार्मोन रक्तचाप को नियंत्रित करता है और रक्त में सुगर के स्तर को भी बढ़ाता है.

यह सुनिश्चित करता है कि अगर आप तनाव में हैं तो घबराहट महसूस न करें, बल्कि आपका दिमाग चौकन्ना रहे और कुछ करने के लिए आपमें ऊर्जा भी रहे.

यह हार्मोन किसी तनावपूर्ण घटना के बाद संतुलन बहाल करता है. तनाव से भरी सुबह के बाद आप फिर से सामान्य होने में सक्षम होंगे.

अगर यह शाम में होता है तो यह आपके दिमाग में चलता रहेगा.

दिन के दूसरे हिस्से में बार-बार तनावपूर्ण घटनाएं हों तो मोटापा, टाइप-2 मधुमेह और अवसाद जैसी लंबी चलने वाली बीमारियां हो सकती हैं.

यामानाका कहते हैं, "यदि आप शाम में तनाव से बचकर रहें तो सुबह तनाव से भरे काम बेहतर तरीके से कर सकते हैं."

जल्दी शुरुआत में मदद करने के लिए हो सकता है कि सुबह में कार्टिसोल का स्तर अधिक हो.

मैड्रिड की कंप्लूटेंस यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक क्रिस्टिना इस्क्रिबानो बैरेनो कहती हैं, "सभी लोग सुबह के समय अधिक प्रभावी नहीं होते."

"जो जागे सो पावे, जो सोये सो खोवे" जैसी कहावतें बताती हैं कि हमारे जीवन में सुबह का क्या महत्व है. इसलिए जो लोग सुबह में काम करना पसंद करते हैं, वे फ़ायदे में रहते हैं.

सुबह या शाम का व्यक्ति होना कई चीजों से प्रभावित होता है. जैसे- उम्र, लिंग, सामाजिक और पर्यावरणीय कारक वगैरह.

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